Wednesday, 30 April 2014 10:28
Written by अभिनव तैलंग
4 से 7 अप्रैल तक उज्जैन की कालिदास वीथिका में उज्जैनवासी देख सकेंगे माता-पिता, बुज़ुर्गों पर केन्द्रित मार्मिक कविता पोस्टर प्रदर्षनी
भोपाल। सामाजिक सरोकारों के लिए विख्यात राजधानी के सुपरिचित कवि-फ़िल्मकार अनिल गोयल की माता-पिता, बुज़ुर्गों पर केंद्रित कविता पोस्टर्स की भावुक प्रदर्षनी ‘माँ: एक भाव यात्रा’ दि. 4 से 7 अप्रैल तक उज्जैन की कालिदास वीथिका में लगाई जा रही है। माता-पिता, बुज़्र्गों की अनदेखी करने वाली संतानों पर श्री गोयल ने तीखा रचनात्मक प्रहार किया है जो उनके अंतर्मन को खदबदा देता है। ब्लैक एंड व्हाइट फोटो की पृष्ठभूमि पर उकेरी कई पंक्तियाँ जैसे ‘पति को/ काँधा देने/ चार जने/ आए/ मेरे जने/ चार नहीं आए/ बस’ या ‘मेरे ही/ दूध से/ मिला बल/ इतना कि/ मुझ पर ही/ आजमाया गया’ ष्या ‘बाँझ स्त्री/ कोसती है भगवान को/ पूतोंवाली/ ख़ुद को कोसती है’। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अनिल गोयल कुछ बरसों से सामाजिक सरोकारों से जुड़ी अपनी कई मुहिम खासकर माँ, बेटी, पषु-पक्षी, जंगल, पर्यावरण, पानी आदि को लेकर संवेदनषीलता से नाता रखनेवालों के बीच अलग ही नज़र आते हैं। उनके कविता पोस्टर्स आंदोलित करते हैं।
उनकी मार्मिकता बेचैन करती रहती हैं। अपनी तरह की इकलौती यह प्रदर्षनी अब तक देष के अनगिनत स्थलों पर लगाई जा चुकी है। कवि ने ‘माँ’ के बहाने औरत के साथ सदियों से जारी अत्याचार-अनाचार को बेनकाब किया है। छोटी-छोटी पंक्तियों में माँ के प्रति बदलते रवैये से दर्षकों को कड़वी सचाई का अहसास होता है। ‘लोरियाँ सुनाकर/ सुलाती थी जिसे/ जागती है/ उसी की/ घुड़कियाँ सुन’ या ‘कहाँ-कहाँ/ नहीं भटके/ औलाद की ख़ातिर/ कहाँ-कहाँ/ नहीं भटकाया/ औलाद ने’ अथवा यह कि ‘माँ-बाप/ अँधेरी कोठरी में हैं/ घर का चिराग़/ रौषन है’ जैसी उत्तेजक पंक्तियों से समाज का कसैला सच दिखानेवाले श्री गोयल में बदलाव की उम्मीद भी दिखती है इसीलिए उनकी एक कविता बहुचर्चित रही है कि ‘मत कहिए कि मेरे साथ रहती है माँ/ कहिए कि माँ के साथ रहते हैं हम’। उनका आग्रह है कि ‘माँ के कज़र् की क़िस्त/ समय से चुकाइये/ सुख, समृद्धि/ और वैभव का/ बोनस पाइए’। ज्ञातव्य है कि भोपाल के सुभाश नगर विश्राम घाट पर यह संवेदनषील प्रदर्षनी स्थायी रूप से प्रदर्षित है।
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अनिल गोयल: संक्षिप्त परिचय -साहित्यकार एवं व्याख्याता (स्व.) श्री जीएस गोयल एवं श्रीमती राधारानी की पाँचवी और अंतिम संतान. 6 नवम्बर 1961 को भोपाल में जन्म. छः माह की उम्र में पोलियो से ग्रस्त. नतीज़तन दोनों पैर और सीधे हाथ समेत 70 प्रतिषत विकलांगता के साथ षुरु हुआ जीवन आज तक सक्रिय है. विविध विधाओं में माहिर, कवि, गीतकार/ स्क्रिप्ट राइटर/ निर्माता-निर्देषक/ कैमरामेन/ उद्घोषक/ गायक/ अभिनेता/ नेरेटर/ पत्रकार/ पेंटर के रूप में गुज़ारे 52 वर्षों की थकान रहित यात्रा अभी भी द्रतु गति से जारी. षपथ ली कि हर उस विषय को विभिन्न माध्यमों से जनचिंता का आधार बनायेंगे जो विलुप्त होते जा रहे हैं. इसी के तहत् कई बरसों से अनेक नगरों-कस्बों में बुजुर्गों, बेटी, पषु-पक्षी, जंगल, पर्यावरण, पानी आदि पर केंद्रित कविता पोस्टर प्रदर्षनी का आयोजन. ‘माँ’ और ‘बिटिया की चिठिया’ प्रदर्षिनयाँ बहुचर्चित रहीं. उवजीमतण्बवउ और ण्इपजपलंापबीपजीपलंण्बवउ नामक बेव साइट देष के असंख्य नेट यूजर्स द्वारा बेहद सराही जा रही है. इसमें बेटियों पर केंद्रित कविता पोस्टर्स, समाचार और लेखादि पढ़े जा सकते हैं. ‘उसी चैखट से’/ ‘बिटिया की चिठिया’/ ‘रोटी नहीं सवाल नया’ पुस्तकों का प्रकाषन. सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने वाले रचनाकार-कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित. संपर्क: ‘अंतर्नाद’, 265 ए, सर्वधर्म कालोनी, कोलार रोड, भोपाल 462042 (मप्र) मो. 09425302353